भारत की सबसे बड़ी धन सम्पदा है,यहाँ की प्रकृति, हमारी विरासत, और 5000 साल से भी ज्यादा पुरानी संस्कृति , जो इसे समझकर ,जानकार कार्य करता है, उसे लाभ अवश्य मिल सकता है| भारत में आम लोगों में सदियों से भाई चारे, सेवा, परस्पर सहयोग का इतिहास रहा है|
आधुनिक तथा उच्च शिक्षा के लिए लालायित युवा वर्ग में भारत के प्राचीन इतिहास, विरासत व संस्कृति से सीख लेने की आतुरता ही नहीं दिखती है|
आधुनिक शिक्षा से काफी सारे लोगों को नौकरी तथा उद्योग के अवसर प्राप्त हो रहे है,पर बहुत सारे पढ़े लिखे लोगों में स्वरोजगार द्वारा जीवन यापन करने का आत्मविश्वास ही नहीं बन पा रहा है| स्कूल, कॉलेज में आज “शिक्षा” दी जाती है, पर अंग्रेजी में शिक्षा का अर्थ “Punishment” दंड भी है|
जो शिक्षा, एक बड़े तबके को स्वरोजगार व नौकरी दिलाने के योग्य नहीं बना पा रही, ज्ञान में वापस नहीं ला पा रही है, ऐसी शिक्षा में सुधार होना अति आवश्यक है |
परस्पर सहयोग का महत्व भी समझना जरूरी है ,
आज विद्यार्थी एक दूसरे से अधिक अंक लाने की होड़ में रहते हैं, पर स्वरोजगार या कोई नया कार्य करने के लिए ,प्रतियोगिता नहीं मित्रता व भाईचारा चाहिए | सरकारी नौकरी या संस्थाओं में कुछ सीट या पद पाने के लिए यह अंक प्रतियोगिता ठीक हैं, पर जिंदगी में परस्पर सहयोग तथा सेवा भावना रखकर भी बड़े-बड़े काम बन सकते हैं| आज पतंजलि ,गूगल ,माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, तथा अनेक उद्यम पार्टनशिप तथा सेवा भावना से प्रेरित होकर चल रहे हैं|
वे विश्व की सफलतम कम्पनियों में से हैं| एक से भले दो,दो से भले चार यह बात को, हम जीवन में अपनाकर अद्भुत सफलता की ओर बढ़ सकते हैं|
भारतीय क्रिकेट टीम व इसरो इसी भावना से प्रेरित होकर अपने-अपने क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित कर रही है| इन संस्थानों में जाति, धर्म , संकीर्ण सोच का कोई स्थान नहीं है| वहां एक दूसरे की सफलता का जश्न मनाना व परस्पर सहयोग से अपने कार्य को अंजाम देना,यही भावना सर्वोपरि है, इसलिए वे सफल भी है|
हमारे विद्यार्थी एक दूसरे से मात्र प्रतियोगिता करते हैं , वे त्याग, परस्पर सहयोग जैसे जीवन के महत्वपूर्ण अंगों का अनुभव ही नहीं कर पा रहे हैं| अपनी संस्कृति, इतिहास तथा विरासत को समझना, विद्यार्थियों के लिए बेहद फायदे मंद हो सकता है|
अब ऐसी कहानी सुनिए जिसमें दो लोगों ने इसी पर काम करके, भारत तथा विश्व की नामी कम्पनी पतंजलि को उंचाईयों पर पहुंचा दिया| वे हैं बाबा रामदेव तथा आचार्य बालकृष्ण | बाबा रामदेव ने गुरुकुल से पढाई की| गुरुकुल में पढ़ाई के साथ-साथ नियम से उठना, खान-पान के प्रति सतर्कता तथा सकारत्मक सोच के उपक्रम होते हैं | वहां पर छात्रों में पढ़ाई का बोझ नहीं होता ,
परिणाम की भी ज्यादा चिंता नहीं होती | विद्यार्थी सरल ढंग से पाठ्यक्रम सीखते है| वहाँ योग, गृहकार्य तथा गुरुजनों की सेवा करते हुए अनुभव से सीखने के उपक्रम होते हैं|
बाबा रामदेव ने अपने शुरूआती जीवन काल में योग अभ्यास में महारत हांसिल की, योग हमारी प्राचीन परम्परा है| ऋषि ,मुनि इसका इस्तेमाल करके अपने आप को कठिन परिस्थतियों में भी चुस्त दुरुस्त रखते थे| आज के परिवेश में जहाँ बीमारियों का बोलबाला है तथा/खेल व्यायाम करने के लिए ज्यादा जगह नहीं है , योग का बड़ा महत्व है तथा यह सुविधाजनक भी है|
बाबा रामदेव ने योग को लोकप्रिय बनाने के उपक्रम किये| उन्होंने मुफ्त में योग का ज्ञान बांटा ,तथा लोगों को इसके फायदे बताये| काफी सालों तक योग का प्रचार- प्रसार किया| कई लोगों को इसका फायदा भी पहुंचा,तथा लोगों को उनपर असीम विश्वास हो गया|
उनके साथी बालकृष्ण भी गुरुकुल में पढ़े हुए थे, तथा उन्हें जड़ी बूटी, फल. सब्जियां, तथा शाकाहारी पदार्थों का अच्छा ज्ञान था, सालों तक उन्होंने लोगों को इससे होने वाले लाभ व गुणों के बारे में जागृत किया, इस तरह सीखें हुए ज्ञान से लाभ लिया व अनेक तजुर्बे किये, साथ ही सेवा कार्यो के भी कई उपक्रम किये| आज उनकी कम्पनी (पतंजलि) विश्व की बड़ी कम्पनिओं में शामिल हो चुकी है|
योग तथा हर्बल,पदार्थ हमारी संस्कृति तथा इतिहास का हिस्सा वर्षों से रहे है, उसे फिर से लोकप्रिय बनाने का श्रेय रामदेव बाबा को जाता है,अपनी शिक्षा का इस्तेमाल उन्होंने लोककल्याण के लिए वर्षों तक किया, योग की मुफ्त शिक्षा दी, इसके महत्व के बारे में लोगों को जागृत किया, लोगों का असीम प्यार,व विश्वास पाया| “पतंजली” से हर्बल उत्पाद का एक नया दौर शुरू हुआ, आज यह कम्पनी विश्वव्यापी बन गयी है|
आज आधुनिक शिक्षा में गुरुकुल शिक्षा पद्धति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है|
लोग इंग्लिश मीडियम स्कूल तथा विदेशी पद्धति की तरफ खींचे जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी संस्कृति, विरासत इतिहास पर अटूट भरोसा किया, उस पर शोध किया, वे व्यापर की दुनिया में भी ऊँचा स्थान प्राप्त कर सकते हैं|
आज हम अपने देश के कृषि ,वन सम्पदा तथा शिक्षा व्यवस्था में रोजगार के अनेक संभावनाओं को देख सकते है, जरुरत है इनके अध्यन्न करने की |
बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की सफलता देखकर हमे, यह अति महत्वपूर्ण बात समझ में आती है, की जो ज्ञान लिया है,उसमें तजुर्बे करने का लाभ जीवन में मिलता है, अगर हम कार्य की शुरुआत करते ही , पारितोषिक की उम्मीद करेंगे तो, महत्वपूर्ण तजुर्बे नहीं ले पाएंगे| कोई भी डिग्री या स्किल कोर्स करने के बाद जिंदगी का एक बेहद महत्वपूर्ण समय आता है, उचित तजुर्बा लेना व ज्ञान बढ़ाना यह उस समय की मांग रहती है| सीधे बड़े पद का लाभ लेने के चक्कर में ,हम तजुर्बे लेने से वंचित रह सकते हैं| लम्बी दौड़ में सफल होने के लिए शुरुआत धीमी होनी चाहिए, यह नहीं की सीधे 100 मीटर तेजी से भागे और,फिर थककर हार जाए,
लिए हुए ज्ञान /कौशल का इस्तेमाल ,हम जीवन में आगे बढ़ने के लिए कैसे करते हैं यह भी महत्वपूर्ण हैं
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