कॉल सेंटर (BPO) का भारत में आना मुझ जैसे लाखों लोगों के लिए एक वरदान था क्योंकि इसमें अच्छी तनखा और सहूलियते थी। भारतीयों के अच्छी अंग्रेजी की जानकारी के वजह से यह कारोबार भारत में फैला ,फूला । लाखों युवकों को ,जो मात्र 12 वीं पास थे उन्हे भी इसमें काम करके अच्छी आमदनी करने का मौका मिला ।
मैंने 2003 से कॉल सेंटर में काम करना शुरू किया और लगभग 10 साल अलग अलग कॉल सेंटरों में काम किया। भारत में रहकर विदेशी कंपनियों के लिए काम करके अनेक फलदायी अनुभव हुए जिसे में यहां साझा कर रहा हूं। विश्व की बेहतरीन कंपनियाँ किस तरह श्रेष्ठ बने रहने के लिए नियमों का पालन करती है तथा ग्राहकों की संतुष्ठी के लिए कितनी तत्पर रहती है यह बात उल्लेखनीय है।
कॉल सेंटर से पहले मैं दस साल कंप्यूटर क्लास चला चुका था पर बढ़ते हुए प्रतिस्पर्धा, साथ ही कंप्यूटर के क्षेत्र में नित नये बदलावों के कारण मैंने इसे छोड़कर नया काम करने में ही अपनी बेहतरी समझी। दस साल एक ही क्षेत्र में काम करके मैंने कंप्यूटर सीखाना, विद्यार्थियों को नौकरी दिलाना तथा सेल्समैनशिप व प्रशासन के काम अनुभव से सीखे थे इस वजह से मुझे काफी तर्जुबा हो गया था व आत्मविश्वास भी था की मैं दूसरे क्षेत्र में उतरकर भी अपना जीवन यापन कर लूंगा।
कॉल सेंटर का काम दूसरे काम / उद्योग से थोड़ा अलग है क्योंकि इसमे ज्यादा ध्यान संवाद कला पर रहता है, यही इसका आधार है। काल सेंटर ऐंजेंट को एक दिन में कई कॉल लेने पड़ते हैं तथा ग्राहकों की अनेक समस्याओं का निवारण करना पड़ता है ,एक काल सेंटर में 100-200 या उससे भी अधिक लोग काम करते हैं। अच्छे संवाद तथा व्यवहार करने की ताकत से इसमें टिके रहना संभव है और इसके लिए समूचित ट्रेनिंग भी मिलती है। प्रभावी ढ़ंग से संवाद करने का अभ्यास भारत में स्कूल तथा कॉलेजों मे न के बराबर या बहुत कम सिखाया जाता है, कुछ ऊंचे दर्जे के विद्यालय/ कॉलेज इसके अपवाद हैं।
साधारणतया कॉल सेंटर में ट्रेनिंग लगभग (1-3) महीने की होती है और दो भागो में मुख्यतः होती है, एक भाग में “काम” करने के बारे में सिखाया जाता है तो दूसरे में संवाद करने के बारे में ज्ञान मिलता है।
पहले भाग में जिस पदार्थ/ उत्पाद की जानकारी/ सहायता ग्राहको को देनी है इसके बारे में विस्तृत ट्रेनिंग मिलती है।
दूसरे भाग में ग्राहको से प्रभावी ढंग से संवाद करके, उनके समस्या निपटाने हेतु ट्रेनिंग मिलती है। ग्राहक नाराज है तो उसे कैसे अपनी बातों से शांत करे तथा उसकी समस्या, दिये हुए अधिकारों के अनुसार दूर करें इसकी ट्रेंनिग मिलती है।
मुझे तो अंग्रेजी बोली को सही करने की भी ट्रेनिंग मिली क्योंकि में विदेशी ग्राहकों को फोन पर सहायता देने का काम करने वाला था। मेरा स्वर उनकी समझ में आसानी से आये इसलिए मुझे अपने स्वर को “न्यूट्रल” बनाना था इसे ग्लोबल एक्सेंट भी कहतें हैं ।कॉल सेंटर की ट्रेंनिग पास करने वालों को(फ्लोर)”कार्य क्षेत्र” में जाने का मौका मिलता है। मैं स्वर परीक्षा में पास नहीं हो पाया पर खुश किस्मती से मुझे दूसरे कॉल सेंटर में नौकरी मिल गयी, इस बार मैंने बोलने तथा कार्य करने दोनों की परीक्षा पास की और फ्लोर पर गया । मेरा काम ग्राहकों के कंप्यूटर को ठीक करना था , मेरी पहली कस्टमर ने कंप्यूटर को ठीक करने के लिए हमारे कॉल सेंटर से संपर्क किया तब मैंने उसे बताया की कंप्यूटर गारंटी में नहीं है इसलिए चार्ज लगेगा तो वह हंसकर बोली मुझे फंसा तो नहीं रहे हो मैंने ना में जवाब दिया फिर पेंमेंट होने के बाद ट्रंनिंग में सीखे हुए तरीको व उपलब्ध मदद से मैने उसका कंप्यूटर फिर से शुरू कर दिया,इस तरह रोज हमें 30-35 कॉल लेने पड़ते थे, कुछ कॉल तो एक घंटे से भी ज्यादा के होते थे। इस दौरान हम ग्राहको से काफी बातचीत किया करते थे इसकी अनुमति भी हमें थी। ग्राहको को यह बताने पर की उनका कॉल भारत पहुँचा है उन्हें आश्चर्य होता, कुछ तो मुझे भारत के खास व्यंजनों के बारे में पूछते थे मैं उन्हें “छोले-बटूरे” तथा “चिकन टिक्का मसाला” खाने की सलाह देता था। कुछ एक ग्राहको ने बॉलीवुड की फिल्मे देखी थी ओर बताते थे की यहां के गाने व नृत्य देखना उन्हें पसंद है ,तो मुझे सुखद आश्चर्य होता। सचमुच कला तथा संस्कृति की कोई सीमा नहीं हैं।
कुछ समय के बाद बेहतर तनखा की चाह मैं मैने फिर कंपनी बदली, इस बार ट्रेनिंग और भी बढिया थी व माहौल भी बेहतरीन था। मुझे यहां टेबल टेनिस खेल जो कालेज के जमाने से मेरा प्रिय खेल था, खेलने का मौका मिला।
आने वाले दिनों में मैंने टेबल टेनिस का भी खाली समय में खूब अभ्यास किया तथा प्रतियोगिताये भी जीती। यह कॉल सेंटर मेरे घर से काफी दूर था इसलिए मुझे कंपनी की गाड़ी का उपयोग करने का भी अवसर मिला। एक कार में हम चार लोग सवारी करते थे , इस तरह मेरे और मित्र भी बने। रास्ते में “एफ एम” पर गाना सुनना, वक्त काटने का हमारा तरीका था। कॉल सेंटर में कार्य में कठिनाई होने पर मुझे अपने सुपरवाईजर की मदद लेनी पड़ती थी वह भला मानुस बिना डॉटे या मुँह बनाये मेरी मदद करता था ,आगे चलकर मुझे पता चला की वह एक पायलट बना। हमारे टीम जिसमें लगभग 15 लोग थे उसका प्रमुख मुझसे लगभग 12-13 साल छोटा था उसने मुझे हमेशा सम्मान दिया तथा मैंने अपने काम से उसे संतुष्ट रखा ।
कॉल सेंटर में व्यक्ति के चेहरे,आकार या पृष्टभूमि का कोई महत्व नहीं होता मात्र उसका कार्य ही बोलता है,उसके ज्यादा से ज्यादा समस्या निवारण करने की शक्ति ही महत्वपूर्ण होती है। उसी व्यक्ति की प्रशंसा होती है जो अपने “ऑकडे” अच्छे रखता है।
हम अमरीकी ग्राहको से व्यवहार करते थे। अमरीका विश्व का सुपरपावर हैं तथा लोगो के मन में अमरीकीयों की एक अलग तस्वीर है , कुछ मित्र उनसे संवाद करते हुए हड़बढ़ा जाते थे लेकिन मुझे उनसे कभी डर या घबराहट मेहसूस नहीं हुई । मैं विभिन्न किताबों पढने व फिल्में देखने के वजह से अमरीकी लोग व उनकी संस्कृति के बारे में पहले से ही अच्छे से जानता था साथ ही भारतीय संस्कृति का ज्ञान होने से मुझमे बेहद आत्मविश्वास था, इस आत्मविश्वास ने “बेहद नाराज” ग्राहकों को संतुष्ट रखने में हमेशा मेरी मदद की और मेरी नौकरी इस वजह से बनी रही ।
कॉल सेंटर में लगने से पहले मैंने कंप्यूटर सीखा था, पढ़ाया भी था, बहुत वर्षों के बाद (33वें) साल में मुझे फिर से पढ़ाई (ट्रेनिंग) करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ यह मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं था तथा मैंने अनके चीजें सीखी जिसने मुझे बुद्धजीवी तथा चतुर बनाया ,इस अनुभव के आधार पर मैं कहूंगा की हर एक को जीवन में फिर से पढ़ने या नए कौशल/ कार्य सीखने का मौका मिलना चाहिए ,इसके लिए उसे स्वयं भी कोशिश करनी चाहिए(विविध किताबें पढ़ने की आदत व नए तजुर्बे लेने से यह बिल्कुल संभव है) , भारत में फिर से पढाई के क्षेत्र में आना बहुत कम लोगों को नसीब होता है एक बार पढाई ख़त्म हो गयी या छूट गयी तो फिर से ज्ञान में आने का रास्ता नहीं खुलता ,भारत का एक बहुत बड़ा तबका इससे प्रभावित है,औजार को भी रखे हुए दो-तीन साल में जंग लग जाता है फिर हमारी बुद्धि भी वैसे ही बिना “संघर्ष” के छीण हो जाती है।कॉलेज की पढाई तो मेरे लिए एक औपचारिकता ही थी , पर इस बार अपनी पंसद के काम को सीखने का अनुभव बहुत ही सुखमय व आनंदित करने वाला था। मैंने कॉल सेंटर में होने वाले परीक्षाओं के लिए मन लगा कर पढ़ाई की और उसमें मुझे रूचि थी यह आश्चर्यजनक था क्योंकि कहानी की किताब व अखबार के अलावा गहन अध्यन करने से में हमेशा कतराया था । उम्र के 33 वे साल में, मैं परिपक्व हो चुका था व अपनी जिम्मेदारी समझ गया था इसलिए पढ़ने में रूचि लेना मेरे लिए जरूरी भी था , इस पर मेरी आजीवीका निर्भर थी।
सायकोलाजी का महत्व
कॉल सेंटर में नौकरी करने से पहले जब में कंप्यूटर क्लास चलाता था तब वहां मेरे कई नये लोगों से रोज मुलाकात होती थी। विद्यार्थियों के माँ-बाप को उनके बच्चों के बारे में सलाह मशवरा देना मेरी दिनचर्या का हिस्सा था
विद्यार्थियों के अच्छे ज्ञान अर्जन करने हेतु उनकी मनस्थिति अच्छी हो ,इस बात की अहमियत को मैं उसी काल से समझ गया था। मनोविज्ञान की जरूरत हमे जीवन के हर क्षेत्र व स्थान पर पड़ती है लेकिन अफसोस इस बारे में हमें कोई नहीं बताता हालांकि मैंने भी इसकी जानकारी अनुभव से ही ली । कॉल सेंटर में भी ग्राहको की परेशानियां मिटाने के लिए उसने उचित व्यवहार करना, इसके लिए पहले उनकी मनस्थिति समझना जरूरी होता है, यहाँ पर मनोविज्ञान की जरूरत पड़ती है अगर आप व्यक्ति की पहचान उसके स्वर के लहजे, उसकी पंसद, नापसंद, उसकी आदते इत्यादि के बारे में ,उससे बातचीत के दौरान कर लेते हो तो आपको उसकी समस्या समझने/पहचाने में आसानी होगी। मैं भी ग्राहको से बात करके जल्दी ही उनकी मनस्थिति समझ लेता था जिससे उनकी समस्या को दूर करने में मुझे आसानी होती थी , बाद मे वे इमेल द्वारा प्रश्नावली , में मुझे बहुत अच्छे अंक देते थे जिससे मुझे अच्छा इंसेटिव(पारितोषिक) प्राप्त होता था। मनोविज्ञान का ज्ञान होना व्यापार में बहुत सहायता करता है क्योंकि इससे, आप ग्राहको को बेहतर ढंग से समझ सकते हो, इससे उनसे व्यवहार करने में आसानी होती है ।मनोविज्ञान से ,ग्राहकों की मानसिकता समझके , उनकी जरूरत को ध्यान रखकर हम नए उत्पाद तैयार कर सकते हैं या सेवायें भी दे सकते हैं ।
कॉल सेंटर में अनुशासन सर्वोपरि,
कॉल सेंटर में एक व्यक्ति को आजादी मिलती है कि वह अपने बॉस को भी परामर्श दे सके। मेरे लिए अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में काम करना गौरव की बात थी परन्तु शुरूआत में इसके नियमअनुसार चलने में वक्त लगा। सच्चाई, इमानदारी व कार्य की जिम्मेदारी लेना यहां हर एक से अपेक्षित है व इसकी ट्रेनिंग भी लगातार मिलती है।
हम रोज़ाना 30-40 कॉल लेते थे, हर एक कॉल का निरीक्षण किया जाता था की हमने सही तरीके इस्तेमाल करके ग्राहको को संतुष्ठ किया है या नहीं , ग्राहको की संतुष्ठि सर्वोपरि है इस बात को कितना महत्व दिया जाता है आप इसी बात से समझ लीजिये की गुणवत्ता निरीक्षण करने वाली शाखा हमें हर महीने बुलाकर सही तरीके अपनाने की ट्रेनिंग देती थी ,तथा ग्राहकों से गलत व्यवहार करने के बारे में आगाह करती थी । मैंने अपने समय में एक कर्मचारी जो छे महीने काम करके सवेरे स्थाई घोषित किया गया था उसे शाम को निलंबित होते देखा क्योंकि उसने ग्राहक से बुरा व्यवहार किया था और यह बात गुणवत्ता शाखा के नज़र में आ गयी थी ।
विदेशी लोगों के साथ काम करते हुए लिए गए अनुभव
मैंने लगभग एक लाख विदेशियों से बातचीत की लेकिन हमेशा मेरे प्रति उनका रवैया सकारात्मक ही पाया यह जानने पर भी की मैं भारतीय हूँ ,मुझे नस्लवादी टिप्पणियां ना के बराबर मिली । वहां पर मैने अनेक बूढ़े व्यक्तियों को उनके कम्प्यूटर ठीक करने में सहायता की , उनसे कम्प्यूटर खुलवाना भी पड़ता था और उसके पार्टस भी निकलवाने पडते थे उसमे वे बिना चिल्लायें या नाराजगी व्यक्त करते हुए सहयोग देते थे , जिससे मैं उनके द्वारा कम्प्यूटर को ठीक कर पाया, उन्होंने बेहद शालीनता व संयम दिखाते हुए मेरे निदेर्शों का पालन किया व अपने सृजनात्मक शक्ति का प्रदर्शन किया।
मैंने अपने 10 साल के कार्यकाल में छोटे से लेकर बड़े व्यक्तियों के कम्प्यूटर, इंटरनेट तथा अनेक प्रकार के समस्याओं का निवारण किया इससे कुछ कटु अनुभव भी हुए पर उनके नाराजगी उत्पाद के कार्य क्षमता के वजह से थी , कोई व्यक्तिगत बात की वजह से नहीं , यह मुझे समझ मे आयी। मैंने वहां मैकेनिक, टीचर, कार्पेटंर, मैनेजर, हाॅटेलियर और अनेक व्यवसाय से संबध रखने वालों का काम किया, तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि विदेशी कारीगरों की तुलना में भारतीय कारीगर भी कम नहीं है, जो फर्क है वह उनके नये प्रयोग करने के लिए समय निकालने, संवाद करने व नई जानकारी इकट्ठा करने की शक्ति है,यह बातें उन्हें श्रेष्ठ बनाती है।
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