बेहतर गुरुओं और मार्गदर्शकों की शिक्षा व्यवस्था में जरुरत
हमारे देश का भविष्य है विद्यार्थी तथा युवा वर्ग । आज देखा जा रहा है, की दोनों वर्गों में असंतोष बढ़ रहा है । आज वे सही मार्गदर्शन न मिलने के कारण बड़ी संख्या में व्यसनों का शिकार हो रहे हैं,कइयों को तो अपना आक्रोश जताने के लिए आंदोलन करना ही एकमात्र, रास्ता दिखाई दे रहा है ।
अगर विधार्थियों को हम बेहतर भविष्य देना चाहते हैं तो शिक्षा व्यवस्था में बदलाव के साथ-साथ बेहतर गुरुओं,मार्गदर्शकों की भी आवश्यकता है। सिकंदर के पिता ने उसके लिए महान दार्शनिक “अरस्तु” को नियुक्त किया था, ज्ञान उपार्जन के लिए । महान सम्राट चन्द्रगुप्त को राजा बनाकर मगध की गद्दी दिलाने वाले उनके गुरु विष्णुगुप्त ‘चाणक्य’ को कौन भूल सकता है ,अपने बुद्धिबल व कूटनीति से सत्ता परिवर्तन कराकर उन्होंने चन्द्रगुप्त को राजगद्दी पर स्थापित किया। महात्मा गाँधी जब साउथ अफ्रीका से वापस लौटे तब श्री गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधीजी जी को देश भ्रमण करने व लोगों की व्यथा समझने की सलाह दी व मार्गदर्शन किया। पुराने ज़माने में गुरु, शिष्य साथ ही गुरुकुल में रहते थे । पाठ्यक्रम सीखने के अलावा विद्यार्थी जरुरी जीवन कौशल भी उनसे सीखते थे। गुरुजनों की सेवा करना, गृहकार्य , योग करना उनकी दिनचर्या में पढ़ाई के साथ ही शामिल था । विद्यार्थी , मिलजुलकर कार्य को अंजाम देते थे, इस तरह हर बात किताबों से ही नहीं वरन, अनुभव से भी सीखते थे। युवा अवस्था में बहुत उत्साह तथा स्फूर्ति होती है इन कार्यों से उन्हें अपनी ऊर्जा इस्तेमाल करने का मौका मिलता था। सच्चाई , ईमानदारी, त्याग के महत्त्वपूर्ण गुण को सीखना व उसका इस्तेमाल करना वे प्राकृतिक ढंग से सीखते थे । गुरुजन उन्हें पढ़ाने के साथ-साथ कमियाँ बताकर उनमें सुधार लाने का भी मार्ग भी बताते थे ।
आज की शिक्षा व्यवस्था में सच्चाई , ईमानदारी, कर्मठता को अनुभव से सीखने के लिए प्रावधान होने चाहिए। बच्चे स्कूलों में सीखते हैं, झूठ मत बोलो पर हकीकत की दुनियां में उन्हें हर मोड़ पर कोई झूठ बोलता हुआ दिखाई पड़ता है , इससे उनका कोमल मन विचलित हो जाता है । कौशल विकास भी स्कूलों ,कॉलेजों में सही तरह से क्रियान्वयन नहीं हो पाता। आज युवा मनचाही नौकरी नहीं मिलने पर हताश हो जाते हैं , कई तो कठिन कार्य करने से हिचकिचाते हैं क्योंकि उनको इसकी आदत नहीं होती या उसमे रूची नहीं होती । मनचाहा काम नहीं मिलने का कारण यह भी है की युवा अपना मनपसंद कार्य /विषय एक निश्चित आयु में जान नहीं पाते । समाज के डर या दोस्तों के प्रभाव में आकर कोर्स में दाखिला ले लेते हैं पर कोर्स करने के बाद उसमे अपना जीवनोपार्जन नहीं कर पाएंगे यह उन्हें बाद में पता चलता है । विद्यार्थियों को जागरूक करने के लिए अब शिक्षा क्षेत्र में अध्यापकों की ही नहीं पर दुसरे क्षेत्र के व्यवसायिकों के मार्गदर्शन की भी जरूरत है ,
भारत के पास आज बेहतरीन कृषक ,इंजीनियर,डॉक्टर,नर्सेज ,वकील, अकाउंटेंट, कंप्यूटर विशेषज्ञ, कारीगर तथा व्यवसायिक हैं। विद्यार्थियों को इन लोगों के ज्ञान व मार्गदर्शन मिलना इसी संदर्भ में आवश्यक हो जाता है । ” मात्र पाठ्यक्रम सीखने के बल पर विद्यार्थियों से जीवन का मार्ग ढूंढ़ने की उम्मीद करना कितना न्यायपूर्ण है । हमारे सैनिक जो देशभक्ति ,अनुशासन तथा कार्यकुशलता के प्रतीक हैं ,अवकाश प्राप्ती के बाद उनके तजुर्बे का लाभ लेना भी आवश्यक है ।
विद्यार्थी इन सब मार्गदर्शकों महानुभावों तथा के सानिध्य में रहकर जीवन मूल्य तथा कौशल विकास के गुण अच्छे से सीख सकते हैं, ऐसी व्यवस्था भी करनी पड़ेगी, जिससे इन महानुभावों का ज्ञान व्यर्थ न जाए । शिक्षा प्रणाली के बेहतर क्रियावयन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। दुनिया में आज सबसे ज्यादा तकनीकी क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं हमारे भारत देश में हैं , महिलायें खेल,नर्सिंग,खेती,शिक्षा , घर की देखभाल करना व अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं ,उनके ज्ञान व तजुर्बे का लाभ पिछड़े वर्ग की महिलाओं,वंचितों व विद्यार्थियों को मिलना चाहिए।
“किताबों को तो गुरुओं का गुरु माना गया है, इन्हें पढ़ने की आदत डालकर गुरु व मार्गदर्शकों की कमी को कुछ हद तक पूरा किया जा सकता है”।