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भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहते थे ?

भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहते थे ?

भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहते थे​ ?

भारत एक प्राचीन देश है । हमें अपना इतिहास भी समझना जरुरी है,यह कोई “तारीखों की ही प्रश्नावली”  नहीं है ,जो विद्यार्थियों को परीक्षा में पूछी जाती है । “जो लोग इतिहास नहीं समझते हैं , वे लोग इतिहास की गलतियों को फिर से दोहरा सकते हैं ।इतिहास तो हमें भविष्य में ,सुरक्षित रहने का मार्ग बताता है ।
आज की शिक्षा व्यवस्था में इतिहास की जानकारी परखने के लिए कुछ सवाल पूछे जाते हैं, पर यह हमारी प्राचीन संस्कृति तथा सभ्यता को समझने के लिए काफी नहीं हैं । भारत के गौरवशाली इतिहास को तो, हर एक को जीने की जरुरत है। हमारे विद्यार्थी आज इतिहास में घटी घटनाओं से सीख नहीं ले पा रहें हैं , इसलिए भी आज देश पिछड़ रहा है। हमारी सभ्यता, संस्कृति तथा इतिहास की गौरवशाली गाथा तो एक ऐसा अनुभव है, जिसे हर भारतीय को लेना चाहिए। पाठ्यक्रम की किताबों के अलावा, विभिन्न किताबों से हम इसे आसानी से ले सकते हैं । शताब्दियों से हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है । कई बार बाहरी देश के आक्रमणकारियों ने भारत देश पर हमला कर, यहाँ की धन सम्पदा को लूटा । भारत पर मुग़ल, अफगान,अंग्रेज, पुर्तगालियों ने हमले किये ,उन्होंने हिंदुस्तान में अपना साम्राज्य स्थापित किया और भारत के इतिहास का हिस्सा भी बन गए

भारत में प्राकर्तिक सौंदर्य अतुलनीय था और आज भी है । यहाँ पर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और राजस्थान से लेकर उत्तर में हिमालीय क्षेत्रों तक अप्रतिम ख़ूबसूरती थी । विविध प्रकार के पशु ,पक्षियों का जमावाड़ा था । विशाल सागर, बड़ी नदियाँ जैसे गंगा ब्रह्मपुत्र ,नर्मदा और अनेक जल स्त्रोतों से यह देश लबालब था । यहाँ पर अनेक पहाड़ी श्रंखलाएं (नीलगिरि ,सह्याद्री) और बर्फीली चोटियां व रेगिस्तानी इलाके थे, ऐसी विविधता शायद ही कोई एक देश में देखने को मिलती है ।

भारत में विदेश से लोग क्यों आते रहे ?  क्या कारण था ?

भारत में लगभग हर प्रदेश में सर्दी ,गर्मी ,बारिश यह मौसम सिलसिलेवार आते हैं ।

भारत की धरती खेती तथा उससे सम्बंधित कार्यों के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त थी ।

हमारी धरती पर प्राचीन काल से कृषि के उद्यम हो रहे हैं।

हमारे पास दुनिया में कृषि के लिए सबसे बड़ा भू-भाग था ।

हमारे देश में अनाज ,विभिन्न प्रकार की सब्जियां, फल उगाये जाते रहें है , वनस्पति ,जड़ी बूटी व मसालों का भी बड़ा कारोबार था

भारत अनाज की पैदावार के रूप में सोना उगलती थी ।

उत्तम पैदावार की बदौलत से राजाओं ,शहंशाओं तथा अंग्रेजों को लाखों रुपयों का कर अदा किया जाता था (आज अरबों के बराबर धन राशि)  ।

हमारे देश में अच्छे फसल के लिए पर्याप्त जल तथा बेहतरीन मौसम है ,जो की कृषि के फलने ,फूलने के लिए अनुकूल  है, इसके विपरीत, यूरोप में ज्यादा ठण्ड होती है, जो की वर्ष भर कृषि के विविध उत्पाद के लिए अनुकूल नहीं था , इसी तरह अफ्रीका में बेहद गर्मी तथा अमरीका में कहीं ज्यादा ठण्ड या कहीं ज्यादा गर्मी व कम बारिश होती है । हम तो भारत में सारे मौसम का आनंद उठाते हैं । फसल कटने पर हम ख़ुशी से नाचते गाते हैं। गर्मी की शुरुआत पर पानी से खेलने का त्यौहार होली मनाते हैं । भारत इस मामले में बेहद खुशनसीब था, लेकिन विदेशों में खासकर पश्चिमी देशों में अनुकूल मौसम के अभाव से कृषि के मर्यादित उपक्रम ही होते थे।भारत में तो दूध दही की गंगा बहती थी व घी के चिराग जलते थे ।

पश्चिम हमसे कैसे आगे निकला पश्चिम में औद्योगीकरण कैसे हुआ

पुर्तगाली “वास्को डा गामा ” जिसने भारत आने का समुद्री मार्ग खोजा ,यहाँ से लिए गए मसालों को कई कई गुना मुनाफे में अपने देश पहुंचकर बेचा । मौसम की मार तथा कठिन परिस्थितियों में काम करते हुए विदेश में लोगों ने अपना ज्ञान बढ़ाने तथा हुनर सीखने पर काम किया। वे अपने देश से बाहर जाकर व्यापार तथा दूसरे आय के स्त्रोत तलाशने लगे। ज्ञान पाकर वे प्रयोग करने से नहीं घबराये,धीरे-धीरे  ज्ञान व जानकारी एकत्र किया,  उसे संग्रहालय, तथा किताबों में अंकित किया ।

१७वीं ,१८ वीं तथा १९,२०वे सदी में इसी जमा ज्ञान की बदौलत ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी , अमेरिका इटली ने एक के बाद एक कई आविष्कार कर डाले। रेलवे इंजन, तार, बिजली, हवाई जहाज परमाणु बम बनाकर पश्चमी देशों ने विज्ञानं की सहायता से समृद्धि हासिल की , इस तरह वे संघर्षशील देशों की बिरादरी से निकलकर संपन्न व विकसित देशों की गणना में शामिल हो गये। इस कार्य में विद्यालयों, ,पुस्तकालयों तथा संग्रहालयों की मुख्य भूमिका थी । इसके विपरीत भारतियों को समान शिक्षा का अधिकार आजादी से पहले नहीं मिल पाया ।
भारत के आज़ादी की संक्षिप्त कहानी
१८ वीं सदी से ही अंग्रेजों का अधिपत्य भारत में बढ़ता जा रहा था । 1857 में भारतीय सैनिकों ने अपने अंग्रेज हुकूमतों के खिलाफ बगावत कर दी, लेकिन असंगठित तथा योजना की कमी से यह विफल हो गयी । इसी दौरान भारत में रेलवे, डाक विभाग तथा शिक्षा की शुरुआत हुई । धीरे-धीरे भारत में स्कूल,विद्यालय खुलने लगे भारतीय लोग अपने सामर्थ अनुसार इनमे पढ़ने लगे । भारत में टीचरों, इंजीनियरों , वकील, क्लर्क, व्यापारी तथा उद्योगपतियों की नयी पीढ़ी की बुनियाद डलने लगी । यह पीढ़ी पढी लिखी थी तथा उनमे सूझ- बूझ तथा समझदारी थी , धीरे-धीरे उन्हें लगा की अंग्रेजी शासन में दमन हो रहा है , नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है ।कांग्रेस पार्टी के गठन के बाद इन्हीं विचारों को बल मिला, तथा स्वराज की चर्चा होने लगी। गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने अंग्रेजों के खिलाफ “आजादी के लिए” आंदोलन छेड़ दिया।भारत में धन्य धान्य की तो कमी नहीं थी ,पर बढ़ती हुई आबादी से खेती के लिए जमीन छोटे-छोटे होते जा रहे थे
भारत के किसान तथा शोषित वर्ग ने आगे बढ़कर इसमे हिस्सा लिया । राष्ट्रपिता गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ दिया व उनके बनायीं हुई चीज़ों का बहिष्कार किया। यह अंग्रेजी हुकूमत की आर्थिक कमर को तोड़ने के लिए रणनीति थी । यह आंदोलन शांतिपूर्ण था, दुनिया में पहली बार ऐसा हुआ था, की किसी देश ने शांतिपूर्ण तरीके से स्वतंत्रता की मांग की थीआखिरकार १९४७ में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिल गयी, बिना हिंसा किये भारत ने इसे प्राप्त किया । यह विश्व के इतिहास में अभूतपूर्व घटना है । आज भारतियों को अपनी कृषि के इतिहास को समझकर फिर से भारत को संपन्न बनाना है । कृषि के कई क्षेत्र में हम, आज भी विश्व में नंबर १ हैं , जरूरत है, कृषि को वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक तरीके से करने की ।सारे विश्व में आज खाद्यान आपूर्ति की बड़ी समस्या है ,युवा इस क्षेत्र में काम करके अपने देशवासियों का ही नहीं अपितु दुनियावालों को भी स्वावलबन का मार्ग बता सकते हैं ।

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Image शिक्षा व्यवस्था की कुछ बुनियादी कमियाँ

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