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महिलाओं के लिए चुनौतीपूर्ण "यह सदी"

महिलाओं के लिए चुनौतीपूर्ण "यह सदी"

भारतीय महिलाएं, आज डॉक्टर,वकील,इंजिनीयर व नेता हैं । सेना, पुलिस व सरकारी महकमों में भी वे ऊँचे पदों पर आसीन हैं । महिलाओं ने शिक्षा ,ऑफिस कार्य ,नर्सिंग,बैंकिंग,सिलाई ,फिल्म जगत,फैशन व आवभगत क्षेत्र को अपना विशेष कार्यक्षेत्र बनाया है, एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय महिलायें अब दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या में “तकनीक” के क्षेत्र में काम करने वाली बन गयी हैं  । एक और रिपोर्ट के अनुसार उन्हें पुरुषों की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली(मानसिक ,शारीरिक) पाया गया है ,यह सत्य है ,उन्हें तो  ऑफिस में काम करते हुए घर आकर बच्चों को भी संभालना पड़ता है  व घर का काम भी करना पड़ता है । हमारे संविधान तथा कानून व्यवस्था में उनके सुरक्षा व सम्मान के लिए पर्याप्त इंतजाम किये गए हैं परन्तु फिर भी आज महिलाओं का बड़ी संख्या में उत्पीड़न होना, यह एक बड़ी चिंता का विषय है ,उन्हें आज भी प्रताड़ना तथा कई जगहों(गावों में ) भेदभाव झेलना पड़ता है, सदियों पहले बाल विवाह,सती प्रथा उन पर थोप दिए जाते थे,अमानवीय रीती रिवाजों की वेदी पर उन्हें बली कर दिया जाता था , कई स्थानों पर विधवाओं का बहिष्कार किया जाता था और उन्हें एकाकी जीवन या वैश्या की जिंदगी बिताने पर मजबूर होना पड़ता था , महिलायें उस वक्त अपने अधिकारों के लिए लड़ नहीं पाती थी ,बच्चों को ध्यान रखना,गृहकार्य इसी में उनका समय व्यतीत होता था । भारत के इतिहास में हम झांके तो कई ऐसे प्रसंग भी हैं जहाँ मौके मिलने पर महिलाओं ने अपनी योग्यता तथा साहस का परिचय दिया,अपने राज्य को बचाने के लिए रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों से युद्ध कर अदम्य शौर्य का परिचय दिया, वही पर जीजामाता ने शिवाजी महाराज को बचपन से मार्गदर्शन दिया तथा स्वराज का महत्व बताया, इसी तरह बेगम नूरजहां,रानी एबक्का का भी इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है, गांधीजी की माँ और पत्नी दोनों ने प्रेरणास्पद कार्य किया ,उनकी माँ ने उनको अच्छे चाल चलन का महत्व सिखाया । विदेश रवाना होने से पहले गांधीजी से मांसाहार न करने की तथा परायी औरतों से सम्बन्ध न रखने की कसम ली थी ।
गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा ने गांधीजी का साथ ,हर मुश्किल वक्त में साथ दिया ,उन्होंने अनेकों बार जेल में रहकर स्वतंत्र संग्राम में हिस्सा लिया । उस समय स्वंत्रता संग्राम में अनेक महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया था , सरोजिनी नायडू,कमला नेहरू,विजय लक्ष्मी पंडित , उस वक्त की प्रगतिशील महिलाएं थी, आजादी के बाद महिलाओं को शिक्षित करने की मुहीम ने जोर पकड़ा और उनके स्कूल /कॉलेज में पढाई की लिए बड़े प्रयास हुए जिसमें उन्हें मुफ्त शिक्षा देना भी शामिल था,महिलाओं की स्थिति बेहतर होने लगी है , पर कुछ दशकों से उनकी संख्या पुरुषों की मुकाबले कम होने लगी है, कन्या भ्रूण हत्या इसका मुख्या कारण है, भारत में कई जगहों में अभी भी सामाजिक भ्रांतियां हैं और पुरुषों से उन्हें कम आका जाता है और इस कारण कन्याओं की निर्मम हत्या की जाती है ,सरकार के प्रयासों से इसमें कमी आयी है । महिलायें तो जगतजननी हैं तथा भारत को भी “भारत माता” कहा जाता है, तो महिलाओं  की सुरक्षा का दायित्व भी सबका है ।
आधुनिक युग में महिलायें हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है चाहे सुरक्षा का क्षेत्र हो, खेलकूद हो या प्रशासनिक काम , परन्तु व्यापार तथा सामाजिक कार्यों में उनकी भागीदारी अपेक्षाकृत कम है। समाज में जागरूकता बढाने के लिए उनका सामाजिक कार्यों में शामिल होना समय की मांग है।
आइये पढ़ते हैं एक ऐसी महिला के बारे में जिसने सेवा भावना से नारी जाती को गौरवान्वित किया तथा समाज को करुणा का मार्ग दिखाया। दक्षिण भारत में बाँझ होने की उलाहना से तंग आकर “थिमक्का” ने वृक्षों को उगाने का उपक्रम किया, उन्होंने अपने खाली समय में सड़क के किनारे “पौध रोपण) का कार्य शुरू किया, उन्हें अपने बच्चे जैसा समझकर उनका पालन पोषण किया , लगभग चार सौ पौधों की देखभाल की व उन्हें वृक्ष बनने तक संभाला,आज वे वृक्ष राहगीरों को छायादार पनाह दे रहे हैं साथ ही अनेक जीव, पक्षियों के लिए आश्रय भी है,इस कार्य के किये उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने “पद्मश्री” पुरूस्कार से नवाजा । थिमक्का पर जिन लोगों ने पत्थर फेंके उसी पत्थरों से सीढ़ी बनाकर जीवन में सफलता पायी।अनपढ़ होने के बावजूद भी सेवा की अनोखी मिसाल पेश की ।

नारियां पुरुषों की अपेक्षाकृत  प्राचीन काल /आजादी से पहले क्यों पिछड़ी रहीं ?
प्राचीन काल से ही हमने देखा के महिलाओं में अशिक्षा
एकता की कमी ने जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग रोक दिया तथा वे मात्र श्रृंगार व भोग की वस्तु बनकर  पिछड़ी रह गयी । नारी, पुरुषों की तरह एक दूसरे का सहयोग कर आगे नहीं बढ़ पायी और इस कारण उन्हें सदियों तक भयंकर त्रासदी झेलनी पडी ,मात्र २ सदी पहले भारत के कई प्रदेशों में पति के मरने के बाद उन्हें ज़बरदस्ती आग के हवाले कर दिया जाता था,बाल विवाह के तहत कम उम्र की लड़कियों अक्सर बच्चे को जन्म देते हुए मृत्यु हो जाती थी ,शिक्षा से उन्हें दूर रखा जाता था ।आज़ादी के बाद उनके उथ्थान का काम व्यापक ढंग से हुआ है ,
आज करोड़ों भारतीय नारी सक्षम तथा संपन्न हैं तो समाज में पिछड़ी हुये महिलाओं को मुख्यधारा में लाना  उनका कर्तव्य बनता है, महिलाओं का सबसे श्रेष्ठ कार्य तो मानव को जन्म देना है ,पर उसी मानव को आज अनेक खतरों का  सामना करना पड़ रहा है । दुर्घटनाओं में आज लाखों लोगों व बालकों की मृत्यु हो जाती है,गुनाह के दलदल में युवा पीढ़ी धसते चली जा रही है (अधिक जानकारी के लिए असत्य ,अज्ञानता से बढ़ती निराशा लेख पढ़े) । एक ऐसा समाज बनाना जिसमें सब सुरक्षित हों ,इसके लिए महिलाओं की बड़ी संख्या में आगे आने की आवश्यकता महसूस की जा रही है,
चमक धमक व चांदनी सिर्फ चार दिन की !
आज हम देख रहे हैं कि कई युवा फ़िल्मी ग्लेमर तथा चमक दमक से प्रभावित होकर एक विशिष्ट जिंदगी जीना चाहते हैं, वे दिखावे, पहनावे की दुनियां में जीते हैं । ज्ञान बढ़ाना ,गुणों को निखारना व सेवाभावना की कीमत नहीं समझते, बदलते हुए माहौल से कुछ लड़कियां व महिलाएं भी अछूती नहीं रही है एक विशिष्ट प्रकार की जीवन शैली की चाह में, मान मर्यादा छोड़ अश्लीलता व फूहडता के क्षेत्र में उतर आयी है,अत्यधिक जरूरतों व ऐसी जीवनशैली को बरकरार रखना आसान नहीं है ,कई अभिनेत्रियों ने हाल ही में दवाब के कारण आत्महत्या भी की है और आये दिन इस तरह की घटनायें सामने आ रही है, जो दिखावे की दुनिया के सच को उजागर करती है । आज समाज में कई स्त्रियां तंगहाली या गृहस्थी के चक्की में पिसकर एकांकी जीवन बिताने को सर्वोपरि मान रही है ,बेहतर है वे अपने ज्ञान व तजुर्बे बढ़ाने की कोशिश करें व  नया कौशल भी  सीखें । सेवा भावना अपनाकर पद्म श्री “थिमक्का” की तरह अपनी बदहाली से वे बाहर आ सकती हैं तथा समाज के लिए महत्वपूर्ण बन सकती है ।

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