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शिक्षा व्यवस्था की कुछ बुनियादी कमियाँ व आदर्श स्कूली व्यवस्था

शिक्षा व्यवस्था की कुछ बुनियादी कमियाँ

शिक्षा व्यवस्था की कुछ बुनियादी कमियाँ  सदी में विद्यार्थियों को अनेक प्रकार की जानकारी लेना में आसानी हो गयी है हो शिक्षा का एक प्रमुख भाग था,वहीं उन्हें इस युग में महामारी,मौसम से होने वाले बदलाव व उससे उत्पन्न प्राकृतिक आपदाएं, सड़क दुर्घटनाएं,युद्ध और प्रदूषण से होने वाले नुक्सान के प्रति जागरूक होना व चिंतन करने की आवश्यकता है ,समय के साथ यह समस्याएं विकराल बनती जा रही हैं । जातिवाद और बढ़ता हुए प्रांतवाद की समस्याओं को भी आगे चलकर उन्हें ही निपटना है तथा देश में धार्मिक सौहाद्रता बढ़ाने की जिम्मेदारी भी उनके कन्धों पर पड़ेगी ।देश की अखण्डता और एकता मजबूत हो और अपना भी विकास हो, इसके लिए ईमानदारी और सच्चाई को जीवन का अभिन्न अंग बनाने की भी चुनोती होगी । शिक्षा व्यस्था में विद्यार्थियों को पढाई के साथ मानसिक व शारीरिक तौर पर मजबूत बनाने के भी उपक्रम करने पड़ेंगे ,शिक्षा जितनी प्राकृतिक ढंग से हो उतना ही अच्छी है यह विद्यार्थियों को उनके पसंद के विषय में रूची बढ़ाने में सहायक बनती है ,अपना मनपसंद विषय ,कौशल चुनने से विद्यार्थी उसमे मन लगाकर प्रयत्न करता है ,इसे जानने समझने के लिए उसे पर्याप्त समय देना उचित है ,खेल, सेवा व सामाजिक कार्य भी इन्हे जानने में मदद करती है ,खेल जीवन का महत्वपूर्ण अंग है,बच्चों के लिए खेल की बेहतरीन सुविधा हो और उसे भी शिक्षा में उचित स्थान मिले यह समय की मांग है,लेखक ने शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए अनेक सुझाव दिए हैं इसका वर्णन आगे के खण्डों में ।

नयी शिक्षा नीति जल्द लागू होने वाली है,इसमें कई क्रांतिकारी प्रावधान है जो स्वागत योग्य हैं ,हालाँकि इसके पूरे कार्यान्वयन के लिए कई वर्ष लग जायेंगे क्योंकि यह चरणबद्ध तरीके से लागू होगा  । 
इसमें कुछ ख़ास बातें जो सराहनीय हैं और जरूरी भी वह हैं ,मातृभाषा में सीखने पर जोर देना(५ कक्षा तक) । माध्यमिक व ऊंची शिक्षा में विद्यार्थियों की भागीदारी बढ़ाने की मंशा दर्शायी गयी है  । माध्यमिक शिक्षा में कौशल विकास का समावेश किया गया है । शिक्षा के साथ साथ अन्य कलाएं सीखने व संवार्गींण विकास हेतु कार्यकल्प करने व शोध गतिविधियों में रूची लेने पर भी बल दिया गया है । इसमें शिक्षकों की बेहतर तालीम की भी व्यवस्था होगी साथ ही विधार्थीयों को रटने के बदले विषय को समझने तथा पाठ्यक्रम को रोचक बनाने की बातें हैं । विद्यार्थियों को बड़ी कक्षा में अपने मनपसंद विषय चुनने की भी छूट है। यह किस तरह से लागू होगा और फायदा करेगा यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा । इसे सही तरीके से लागू करना निश्चित ही एक चुनौती पूर्ण  कार्य है ।

शहर में युवाओं के लिए मर्यादित अवसर पैदा हो रहे हैं तथा गाँवों से पलायन हो रहा तो इसके लिए कई दशकों से चली आ रही शिक्षा व्यवस्था काफी हद तक जिम्मेदार है। संपन्न तथा शिक्षित अभिभावकों के बच्चों के लिए तो यह फायदेमंद सिद्ध हो रहा है पर एक बड़ी संख्या में युवाओं में आत्मनिर्भरता की भावना जगाने तथा अपने दम पर स्वरोजगार करने का गुण यह नहीं सिखा पा रहा है । शिक्षा प्रणाली की एक बड़ी खामी है, बच्चों को परखने हेतु पास/फेल की प्रणाली की, जिसने यह पास/ फेल का नियम बनाया होगा उसका विचार होगा की बच्चों के ज्ञान की जाँच हो और कमी पाये जाने पर समूचित मार्गदर्शन मिले, लेकिन आज के दौर में यह प्रतिशत(पर्सटेंज) के खेल में तब्दील हो गया है, हर विद्यार्थी की समझ बूझ व सीखने की शक्ति भिन्न है ,यह “खेल” एक क्लास में कई विद्यार्थीयों को “विषय ज्ञान” के बारीकियों को समझने के बदले उन्हें बुनियादी तौर पर कमजोर बना रहा है। बार-बार होने वाली परीक्षा से विद्यार्थी “विषय” को समझे बिना मात्र उसे रटने पर मजबूर हो रहें है।

अंग्रेजी में शिक्षा ग्रहण करना भी अनेक विद्यार्थियों के लिए एक कठिन कार्य है,अंग्रेजी में लाखों नए शब्द विद्यार्थी को सीखने पड़ते हैं जिससे पाठ को समझने व याद रखने में मुश्किल आती है ,इसके विपरीत अपनी मातृ भाषा में सीखना आसान है क्योंकि अधिकतर शब्दों की जानकारी  पहले से ही होती है ,मातृ भाषा में सीखने से नींव मजबूत होती है जिससे आजीवन लाभ मिलता है ,अंग्रेजी का समावेश माध्यमिक कक्षा से होनी चाहिये जिससे विद्यार्थी पहले अपने मातृ भाषा में सीखने व बोलने में पारंगत हो जाए ,यह भी सच है की जिन अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थियों को अंग्रेजी सीखने में समुचित मदद नहीं मिलती वे पढाई में पिछड़ जाते हैं ,इससे जीवन पर्यन्त नुकसान झेलना पड़ता है। लेखक ने अंग्रेजी को आसान व रूचिपूर्ण बनाने के लिए प्रयास किये हैं और उसका विवरण भी वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया है ,अंग्रेजी में विविध किताबों से  सहायता लेकर अंग्रेजी अच्छी तरह से सीखी जा सकती है ,अंग्रेजी लिखना पढ़ना आज जरूरी  है क्योंकि इसमें ऊंची तालीम हासिल करने की सहूलियत है,लेकिन ऊंची तालीम के लिए समुचित ज्ञान का आधार भी जरूरी है ,अपनी मातृ भाषा में ज्ञान लेकर हम यह आसानी से बना सकतें हैं ।

 आज बच्चे सालभर परीक्षा की तैयारी करते हुए पाये जाते हैं , इस चक्र में फंसकर वे ज्ञान अर्जन का आनंद ही नहीं ले पाते हैं । कई विद्यार्थी अनेक बुरे तर्जुबो से गुजर कर पढ़ाई छोड़ देते है फिर जीवन में दोबारा इसे शुरू करने का साधन ही नहीं मिलता। इस वजह से मेहनती व प्रतिभाशाली होकर भी वे जीवन में पिछड़ जातें हैं  गांवों तथा छोटे शहरों में विद्यार्थीयों की हालत दयनीय बनी रहती है, ध्यान देने वाली बात यह है की शहर व गांव के विद्यार्थीयों का पाठ्यक्रम एक जैसा है, बिना उचित मार्गदर्शन की वजह से गांव के विद्यार्थियों को करीयर चुनने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है ।कोई आश्चर्य नहीं है की इस वजह कई विद्यार्थियों का मन पढाई में नहीं लगता और वे पढाई छोड़ देते हैं और जिंदगी में कभी किताबों को हाथ नहीं लगाते ।आज यह देखने में आ रहा है की ज्यादातर विधार्थी स्कूल,कॉलेज व प्रतियोगिता की पढाई तक ही अपना ज्ञान सीमित कर रहें हैं ।पाठ्यक्रम की किताबें तो पढ़ते हैं पर आगे चलकर अपना ज्ञान बढ़ाने व स्वस्थ मनोरंजन हेतु दूसरी किताबें पढ़ने के बारे में जानते ही नहीं व नाही उसके लिए प्रोत्साहन मिलता है, जैसे जीवन के सारे कठिन प्रश्नो व उसके जवाब पाठ्यक्रम की किताबों में ही मौजूद हैं ।  सृजनात्मक कार्य करने व खेलकूद के लिए भी विद्यार्थियों को कम समय मिलता है,आज पढ़े लिखे लोग भी बेरोजगार हैं तो इसके कारण भी दिख रहें हैं ।
समाधान क्या है ?

आज के दौर में बिना परीक्षा दिये भी विद्यार्थी का विषय ज्ञान/ काबिलियत समझा जा सकता है व इसके उपाय भी करने पडेंगे। सिंगापुर व फिनलैंड की शिक्षा व्यवस्था को दुनिया के सर्वोत्तम शिक्षा व्यवस्थाओं में से एक माना गया है,उन्होंने बार बार होने वाली परीक्षा ‘व पास, फेल की प्रणाली को हटाने का काम शुरू कर दिया है, वे इसे बच्चों के ज्ञान अर्जन में बाधा मानते हैं।अंग्रेजी भाषा में पाठ्यक्रम सीखने में कई बच्चों को बड़ी दिक्कत आती है, तो उनके लिए अच्छी किताबें पढ़ने की व्यवस्था होनी चाहिए ।  स्वयं शिक्षा की आदत से विद्यार्थी अपने घर में भी पढ़ाई कर सकता है, साथ ही अनेक जीवन आवश्यक गुण भी सीख सकता है तो इसे बढ़ावा देना आज जरूरी हो गया है। समय की मांग है की विद्यार्थी मात्र “थ्योरी” ही नहीं बल्कि पढ़ाई के साथ साथ जीवन कौशल, सामाजिक कार्य करना भी सीखे ,मात्र  पद/वेतन की कामना से पढ़ाई न करे अपितु अपने गुणों/ सामार्थ को पहचानकर अपना जीवन मार्ग चुने।मौजूदा पीढ़ी में अनेक युवा चमक/दमक व बाहरी दिखावे में आकर देश के आजादी की कहानी व संस्कृति को भूल रहें हैं ,भारत का दर्शन कर भारत की धरोहर को समझना ,ग्रामीणों से मिलना व गाँवों की व्यवस्था जानना ,सेवा शुश्रुषा के कार्य करना यह सब  भी शिक्षा का भाग होना चाहिए । इससे देश व देशवासियों की जरूरत को समझने में सहायता मिलेगी,विद्यार्थी इस अनुभव से देश में दूसरे प्रांत के लोगों को और वहाँ के संसाधनों व धरोहरों को जान पाएंगे , यह सब अनुभव उन्हें , दूसरे प्रदेश में भी स्वरोजगार के अवसर खोजने में काम आएंगे ।अच्छी आदतें, संवाद कला ,संस्कृति का ज्ञान व  इतिहास ऐसे विषय नहीं है जो सिर्फ थ्योरी से याद रखें जा सकते हैं , इन्हे अनुभव से सीखने के लिए पाठ्यक्रम में  समुचित व्यवस्था होनी चाहिये  ।इन्हे सीखाने के लिए अध्यापकों के साथ देश में दूसरे क्षेत्र के व्यवसायिकों की भी सहायता लेनी चाहिए 

बच्चा अगर पढाई में पिछड़ रहा है तो ?
बच्चें अगर पढाई में पिछड़ रहे है तो कुछ सवालों क़े उत्तर माँ-बाप को ढूंढ़ना आवश्यक है।
क्या बच्चे की भाषा की नींव मजबूत है ?
(अंग्रेजी पढ़ने/ समझने) में परेशानी/मुश्किलात तो नहीं आती है ।
क्या पाठ्यक्रम की उपयोगिता को समझाने का कार्य हुआ है ? क्या विद्यार्थी को पाठ्यक्रम सीखने की जरूरत के बारे में पता है और सीखने से क्या लाभ होगा यह जानकारी है ?
क्या बच्चा स्कूली व्यवस्था से तालमेल बैठा पा रहा है ?बार बार परीक्षा देने से उसके सीखने में बाधा तो नहीं आती
क्या हम बच्चों क़े पाठ्यक्रम को आसान बनाने तथा रोचक बनाने क़े तरीके इस्तेमाल कर रहें हैं ?
क्या बच्चा पाठ्यक्रम क़े अलावा दूसरी किताबें पढता है ? (रीडिंग की आदत  आवश्यक है ,रीडिंग की आदत याने पाठ्यक्रम के अलावा विभिन्न किताबें पढ़ने की आदत,भाषा ज्ञान इससे मजबूत होता है और जीवन भर  विद्यार्थी ज्ञान अर्जन करता है  )
क्या परीक्षा में ख़राब प्रदर्शन क़े बाद मात्र उसे उलाहना ही मिलती है, या मार्गदर्शन की भी व्यवस्था होती है ।
क्या बच्चे को शारीरिक विकास व स्फूर्ति क़े लिए खेलकूद का पर्याप्त समय मिलता है ?
क्या अत्यधिक पढाई व परीक्षाओं , प्रतियोगिताओं से उसके कोमल मन पर आघात तो नहीं हो रहा है ?

कैरियर चुनाव हेतु कुछ प्रश्न
10 /12 क़े बाद कैरियर कोर्स का चुनाव कर रहे हैं तो उसका आधार क्या है ?
क्या भारत में रोजगार पाना है तो उसके लिए भारतीय इतिहास ,संस्कृति ,भाषाओँ का समुचित ज्ञान है की नहीं ?
क्या पढाई कि अलावा किसी कार्य से अपनी  रूचि को जानने का प्रयत्न हुआ है की नहीं ?

 

Image शिक्षा व्यवस्था की कुछ बुनियादी कमियाँ

आदर्श स्कूली व्यवस्था

इसमें स्कूल का समय मात्र 3 घंटे हो ,एक क्लास में 15 से ज्यादा बच्चे न हो ताकि गुरु प्रत्येक बच्चे पर ध्यान दे सके तथा उसका निजी तौर पर मार्गदर्शन कर सके। पीरियड मात्र चार होने चाहिए ,इसमें मुख्यत: भाषा पढ़ने व सीखने पर ध्यान केद्रित होना चाहिए तथा रीडींग की आदत डालने की व्यवस्था होनी चाहिए,कठिन विषय जैसे गणित ,भौतिक शास्त्र ,रसायन शास्त्र विद्यार्थियों को थ्योरी ही नहीं अपितु अनुभव से भी सीखने का प्रावधान होना चाहिए । कम से कम आधा घंटा भीतरी खेल जैसे चैस , कैरम, वर्ड गेम्स इत्यादि के लिए होना चाहिए,फिर आधा घंटा बाहरी खेल  जिसमें उन्हें दौड लगाना, रस्सी कूदना, कबड्डी, खो-खो इत्यादि की प्रैक्टिस मिलनी चाहिए, आधा घंटा मनपसंद किताबे पढ़ने  व आखरी आधा घंटा कोई सामूहिक गतिविधी के लिए होने चाहिए।
बड़ी क्लास में जाने पर कौशल विकास की ट्रेनिंग, समय में फेर बदल करके डाली जा सकती है , इसमें बच्चों को पेड़ लगाना अपना भोजन बनाना , पर्यावरण बचाने सबंधी कार्य करना इन बातों का समावेश हो ।
17 या 18 साल के बाद विद्यार्थीयों को छ: महिना से साल भर किसी सेवा या परस्पर सहयोग की गतिविधी में समय देना अनिवार्य करना चाहिए, उसके बाद विद्यार्थीयों को परीक्षा में बैठने की तैयारी के लिए अवसर प्राप्त होना चाहिए ।कोई भी करियर कोर्स चुनने से पहले विद्यार्थी को उसकी सही तरीके से जानकारी मिले व डिग्री कोर्स में १ साल का इंटर्नशिप जरूर हो जिससे वह पर्याप्त अनुभव ले सके । गुरु प्रत्येक विद्यार्थी की मनस्थिति समझें व उसी प्रकार ज्ञान दें (पाठ्यक्रम सीखायें),विद्यार्थी के स्वस्थ मन व तन के लिए गुरु कार्य करें व तत्पर रहें ,17-18 साल तक परीक्षा की जरूरत ही नहीं है , क्लास को आगे बढ़ाने के जिम्मेदारी गुरु की ही रहेगी ।गुरु विद्यार्थी को योग्य बनाने की जिम्मेदारी लें, विद्यार्थियों के स्वाभाविक गुणों को पहचानने में व निखारने में मदद करें,  गुरू विद्यार्थी को आजीवन पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें तथा एक मार्गदर्शक के तौर पर विद्यार्थी की कमी समझे व मार्गदर्शन दें । 

कोरोना काल से समीकरण बदले हैं और घर पर स्वयं शिक्षा करने,स्वस्थ्य शरीर व मन की अहमियत पता चली है

शिक्षा मात्र डिग्री बाँटने और आपसी वैमनस्य बढ़ाने का उपक्रम ना बने ,यह विद्यार्थियों को स्वयं शिक्षा करके स्वावलंबन व स्वरोजगार के अवसर ढूढ़ने/बनाने के योग्य बनाएं । शिक्षा देने की प्रक्रिया को अब स्कूलों से कुछ हद तक निकलकर, वास्तविक दुनिया की जानकारी लेने हेतु भी होनी चाहिए और इसके वास्तविक अनुभव लेने के लिए विद्यार्थियों के पास वक्त होना चाहिए । रीडिंग और स्वयं शिक्षा की आदत इसमें महत्वपूर्ण है,रीडिंग की आदत से पाठ्यक्रम का बड़ा भाग वे खुद ही पढ़ लेंगे ,परीक्षा का डर न होने से रटने की जरूरत नहीं होगी,और आजीवन पढ़ने में रूची बनेगी , विद्यार्थी विचारशील और स्वावलम्बी बनेंगें ,किसी कारण वश बीच में पढाई छोड़ने वाले विद्यार्थी भी यह आदत होने से अपने ज्ञान बढ़ाने की प्रक्रिया खाली वक्त में जारी रख सखेंगे ,उन्हें मात्र अच्छे पुस्तक और मार्गदर्शन की उपलब्धता करानी होगी ।.इतिहास ,भूगोल ,विज्ञान,कौशल विकास और भाषा जैसे विषय सीखने में कलाकारों और व्यवसायीकों की भी मदद ली जाए । खूबसूरत चित्रों,नाटक व मूर्तियों द्वारा प्राकृतिक तरीके से इन्हे सीखाने का प्रबंध हों । समय समय पर सांस्कृतिक आयोजन ,नाटक व कला प्रदर्शनी की व्यवस्था करना आवश्यक है इससे विद्यार्थियों को देश ,विदेश की संस्क्रीती,इतिहास,परम्पराएं अनुभव से जानने का अवसर मिलेगा, देश के विभिन्न प्रान्तों में रहने वाले वासियों के प्रति इससे अपनत्व की भावना बढ़ेगी ,घर पर खाली समय मिलने पर गृहकार्य सीखने और करने का भी विद्यार्थियों को समय मिलेगा इसे भी कौशल विकास का हिस्सा समझा जाये , हाथ के काम करने से व्यक्ति धैर्यवान व मेहनत करने का आदि बनता है , २१ वी सदी में पुरुष को भी गृहकार्य में महिलाओं का सहभागी बनना चाहिए इसकी आदत स्कूली काल से होनी चाहिये

 ऐसी स्कूली व्यवस्था से होने वाले फायदे
बच्चों में रीडिंग की आदत निर्माण होने से स्वयं ज्ञान लेने की आदत बनेगी , भाषा की पकड़ प्राकृतिक रूप से मजबूत होगी ,आगे चलकर अपने मनपसंद विषय का भी पता चलेगा ,इन सब से ,समय व सुविधानुसार स्वयं शिक्षा करने में  आसानी होगी(यह बात आज के परिवेश में जरूरी है जब चीजें इतनी तेजी से बदल रही है,गूगल ,यूट्यूब से अनेक विषयों को खुद ही सीखना अब संभव है ) ,छोटी क्लास होने से गुरुओं का विद्यार्थियों पर अधिक ध्यान रहेगा,उन्हें मार्गदर्शन देने में आसानी होगी ,परीक्षा न होने से विद्यार्थियों में दबाव नहीं रहेगा वे बिना डर के पढ़ सकेंगे,  सृजनात्मक कार्यों को बल मिलेगा तथा वैज्ञानिक सोच व स्वावलम्बन जागेगा । खेलों में भाग लेने के लिए व उसका अभ्यास करने के लिए ज्यादा वक्त मिलेगा ,बच्चे खेल की आदत से मजबूत शरीर व स्वस्थ मन का निर्माण करेंगे, वे खेल से ईमानदारी,अनुशासन व निर्भीकता को प्राकृतिक ढंग से सीखेंगे ,अच्छी आदते अनुभव से सीखने पर उस की नींव बन जायेगी ।
सामूहिक गतिविधि से परस्पर सहयोग की भावना बढे़गी।
अपने खाली समय में वे अपने छंद  पाल सकेंगे, ऐसे तर्जुबों से जीवन मार्ग /उद्देश्य ढूँढने में आसानी होगी।अत्याधिक मोबाइल गेम्स व अन्य व्यसनों की तरफ ध्यान नहीं जायेगा , जिस  विद्यार्थी की किसी कारण वश पढ़ाई छूट गयी है वह भी किताबें पढ़ने की आदत बनने से  ज्ञान अर्जन करने के काबिल बन जाएगाछोटे क्लास होने से स्वरोजगार का एक बड़ा क्षेत्र भी उत्पन्न होगा।

 

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