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सेवा मानव का श्रेष्ठ गुण

सेवा मानव का श्रेष्ठ गुण

भारत महान सेवाधारियों का देश रहा है। मानव जाति की सेवा करना यहाँ की संस्कृति में सदियों से चली आ रही है । श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता पिता को तीर्थ कराने के प्रयोजन में अपने प्राण गवां दिए, इस तरह वे सम्पूर्ण भारत वर्ष में सेवा का प्रतीक बन गये। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद कराने के लिए त्याग किया तथा घोर यातनाएं सही। लाखों लोगों ने अपने परिवार तथा अपने भविष्य की चिंता किये बगैर अंग्रेजों से लोहा लिया। सत्याग्रह करते समय उन वीरों ने लाठियां खायी तथा जेल गये और जेलों के असहनीय परिस्थितियों को झेला । एक बेहतर भारत की कल्पना ने उन्हें इस त्याग के लिए प्रेरित किया। आज उन पुण्यात्माओं की वजह से हम आजादी का स्वाद चख रहे हैं ।आजादी से पहले देश भावना तथा सेवा भावना चरम सीमा पर थी ,उसके बाद भी कई दशकों तक उन्हीं देशभक्तों के सानिध्य तथा आशिर्वाद से यह भावना फली फूली, किन्तु बाद में सेवा के बदले स्वार्थीपन तथा संकीर्ण मानसिकता ने जन्म ले लिया हर कार्य में अपना निहित स्वार्थ देखना यह चलन तेजी से फ़ैल गया, अनेक उदाहरणों तथा इतिहास के महापुरुषों की कहानी पढ़कर हमें पता चलता है कि सेवा भावना रखने से ज्ञान, मानसिक शक्ति, तथा जीवन मार्ग प्रशस्त होता है , आइये कुछ उदहारण देखते हैं जिसमें सेवा करने वाले व्यक्तियों ने आधुनिक युग में भी अपना गौरवशाली स्थान प्राप्त किया ।
मदर टेरेसा विदेश से आयी थी ,पर भारत को अपना घर बना लिया, सारा जीवन दीन-दुखियों की सेवा की, कलकत्ता में उन्होंने “मिशन ऑफ़ चैरिटीज ” की स्थापना की, सड़क पर पड़े हुए बीमार ,वृद्ध व्यक्तियों को इसमें आश्रय देकर उनकी सेवा की, उपचार किया, वेश्याओं की सहायता की तथा पनाह दी , उनके उत्थान के लिए कई कार्यक्रम चलाये,सेवा भावना को देश में लोकप्रिय बनाया। उनका कहना था कि अगर आप सौ आदमी को खाना नहीं खिला सकते तो कम से कम एक को तो खिलाओ। आज देश के पिछड़े हुए लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए ऐसी ही सेवा भावना की जरुरत है।
आज हमारे देश में कई शिक्षा संसथान, हॉस्पिटल तथा आश्रय घर सेवाधारी व्यक्तियों की बदौलत चलते हैं, लेकिन यह संस्थाएं बहुत कम है, दीन दुखियों की बढ़ती संख्या को संभालने में ना काफी ।
सेवा भावना से जीवन में अपरोक्ष रूप से भी लाभ मिलता है ।
कुछ वक्त पहले हमारे वायुसेना के एक पायलेट का जहाज POK में गिर गया, पायलेट “विंग कमांडर” अभिनन्दन वर्थमान ने विपरीत परिस्थितियों में अपना धैर्य रखा , अपनी सूझबूझ तथा सैनिक शिक्षा से अपनी सुरक्षा की, “पाकिस्तानी” बंदीगृह में रहने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें रिहा कर दिया गया । भारत की कूटनीतिक प्रयासों और करोड़ों देशवासियों की दुआओं का यह नतीजा था । सही सलामत मौत के मुँह से वापस लौटने के बाद पूरी देश ने खुशियां मनायी, लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं की उनके पिताजी भी वायुसेना में अधिकारी थे तथा माताजी डॉक्टर । अभिनन्दन की माताजी ने एक डॉक्टर की हैसियत से UN के लिए काम करते हुए अफ्रीकी देशों में कई राहत और बचाव के कार्यकर्मों में भाग लिया ,वहां उन्होंने रोगियों की सेवा, सुश्रुषा की ।
आज लोग संपन्न होने के बावजूद जिंदगी से परेशान रहते हैं तथा अपने मनोरंजन के लिए नित नये साधन ढूंढते हैं, अगर थोड़ा वक्त निस्वार्थ सेवा के लिए दें तो अवश्य कुछ शांति मिलेगी तथा जीवन के बहुत से अनसुलझे प्रश्नो को सुलझाने में मदद भी ।

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