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स्वयं शिक्षा की जरुरत व कैसे करें!

स्वयं शिक्षा की जरुरत क्यों व कैसे करें

स्वयं शिक्षा की जरुरत आज देश के शहरों व गाँवों में लाखों स्कूल व कॉलेज खुले हुए हैं । शहर में ज्यादातर विद्यार्थी पढाई के लिए कोचिंग की सुविधा लेते हैं। परीक्षा में ज्यादा अंक लेने के लिए तथा नौकरी पाने के लिए यह सहायक होते हैं पर जीवन में अनेक मौके ऐसे आते हैं,जिसमे खुद ही सीखना पड़ता है,जैसे कोई 12वी पास करने के बाद इंजीनियरिंग में दाखिला लेता है , तब वह विद्यार्थी अपने घर से बाहर जाता है तथा हॉस्टल में रहता है , वहाँ उसे “कोचिंग क्लासेज” की व्यवस्था नहीं मिलती है,फलस्वरूप ऐसे कई विद्यार्थी बिना सहायता के फ़ैल हो जाते हैं, जिन्हें पल- पल पढाई में सहायता की जरुरत है वे  ज्यादा सफल नहीं हो पाते। जीवन में स्वयं शिक्षा से सीखना लाभदायक है । अगर कभी हम एक क्षेत्र में असफल होते हैं तब स्वयं शिक्षा से हम नया कौशल सीख सकते हैं ,इसमें मात्र पढाई की ही नहीं अपितु अपने जीवन में नए अनुभव लेना तथा उनसे सीखना भी शामिल है ।गाँवों में कोचिंग की सुविधा साधारणतया उपलब्ध नहीं होती। दुर्गम इलाकों में तो बड़ी मुश्किल से स्कूल, कॉलेज खुलते हैं ।
गरीब परिवार से सम्बंधित विद्यार्थी अतिरिक्त सहायता नहीं मिलने से पढाई में पिछड़ जाते हैं।  कुछ विद्यार्थी अभाव के कारण व कुछ मुश्किल पाठ्यक्रम के कारण प्रतिभावान तथा मेहनती होने के बावजूद, पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं, आगे चलकर ज्ञान अर्जित करने का कोई मार्ग उन्हें नहीं मिलता. इन सब सन्दर्भों में सेल्फ स्टडी (स्वयं सीखने) की आवश्यकता महसूस की जा रही है । अगर कोई विद्यार्थी बड़ी क्लास में आते-आते पढाई में पिछड़ रहा है,शिक्षा व्यवस्था से ताल मेल नहीं बिठा पा रहा है ।उसे एक साथ चार-पांच विषय सीखने में कठिनाई हो रही है तो हिंदी भाषा की ट्रेनिंग लेना एक अच्छा पर्याय है । भाषा सीखने की उचित व्यवस्था कराने की यहां जरूरत है, इसके लिए किसी  प्रशिक्षक से मार्गदर्शन लेना भी उचित है । इस के साथ कुछ कौशल सीखना व रीडिंग की आदत निर्माण करना यथोचित है । विविध किताबें पढ़ने की आदत डालकर वह ज्ञान ले सकता है । कालान्तर में समझदारी बढ़ने पर पढाई पूरी करने का प्रयास कर सकतें हैं ,यह भी स्वयं शिक्षा का एक प्रकार है । नोट : गावों में प्रशिक्षक मिलना संभव नहीं है तो जूनियर विद्यार्थी सीनियर विद्यार्थी से भाषा सीखने में सहायता लें । 

अगर हम इतिहास में झांके तो कई ऐसे लोग थे जिन्होंने स्कूल, कॉलेज न जाकर घर से ही पढाई की , स्वयं अपना मनपसंद विषय चुना तथा महारथ हासिल की , इस काम में उन्हें किताबों ने महत्वपूर्ण सहयोग दिया आज के दौर में भी कई ऐसे लोग है जिन्होंने सिर्फ लिखना, पढ़ना सीखा और स्वयं ज्ञान हासिल कर सफल बने(बिना डिग्री ,डिप्लोमा के) । इस वक्त हम ध्यान दे तो हमारे कमरे में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ क्या है? जी हाँ “रोशनी” दुनियां को अँधेरे से निकालकर प्रकाशमान करने वाले वैज्ञानिक थॉमस आल्वा एडिशन को कौंन नहीं जनता। गौरतलब बात यह है की उन्होंने भी स्कूल छोड़ दिया और घर से पढाई की । उनकी माँ ने उन्हें इसमे सहयोग दिया, उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक आविष्कार किये  । ”बल्व” को आम आदमी के इस्तेमाल के लिए बनाकर दुनिया को प्रकाशमय किया । यदि हम 17,18, 19,20 वी सदी का अध्ययन करें और उस काल में होने वाले अनेक अविष्कारों तथा खोजियों और नायब काम करने वालों की सूची बनायें तो यह भी पाएंगे  की उनमें बड़ी मात्रा में स्वयं शिक्षा लेने वाले कई व्यक्ति थे ।
 भारत के मशहूर लेखक, कवि तथा भारत रत्न पाने वाले  श्री रविंद्र नाथ टैगोर को संगीत, साहित्य, गणित समझने का अवसर  विरासत में अपने परिवार से मिला था।  वकालात में दाखिला लेने के कुछ समय बाद उन्होंने उसे छोड़ दिया और वे कला,संगीत व लेखन कार्य में उतर गए ।  आगे चलकर साहित्य में ,गीतांजलि काव्य लिखने के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार दिया गया ।
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की आरंभिक शिक्षा घर से हुई , अपने जीवन में उन्होंने कई भाषाएँ सीखीं । वे देश के प्रथम शिक्षा मंत्री बने। IIT . UGC की स्थापना में उनका बड़ा योगदान था।  इन उदाहरणों से यह पता चलता है की कुछ सदी पहले भी कई लोग स्वयं शिक्षा लेते थे, व उससे उन्हें बहुमूल्य लाभ मिला ।
आज के दौर में सेल्फ स्टडी करना ,अनेक आसान किताबों तथा इंटरनेट की वजह से संभव हो गया है। उदाहरण के तौर पर अगर हम अंग्रेजी सुधारना चाहते हैं तो, हमें उसकी आसान किताबें खरीदनी हैं , जो हम पढ़ व समझ सकते हैं । धीरे- धीरे किताबों का स्तर बढ़ाकर व रीडिंग की आदत से अंग्रेजी पढ़ना सीख सकते हैं। अंग्रेजी ग्रामर व कहानी की अनेक किताबें आज बाजार में मौजूद है, जरुरत है समय देने की तथा निरंतर रीडिंग करने की , बिना किसी दबाव के इस तरह विज्ञान व इतिहास की किताबें भी हम आनंद लेकर पढ़ सकते हैं । स्वयं शिक्षा के बारे में अधिक जानकारी ” किताबें पढ़ने की आदत हमें भाषा सीखने में कैसे मदद करती है ” तथा , “रीडिंग की आदत कैसे निर्माण करें ” इन लेखों में  मिलेगी  ।

जानिये स्वयं शिक्षा की भावना ने लाखों युवकों को स्वरोज़गार करने में व भारत को आईटी शक्ति बनाने में कैसे मदद की

  1990 के शुरुआत में एक नए उद्योग ने भारत में अपनी पहचान बनायीं तथा बाद में भारत की पहचान बन गयी वह था “I.T. उद्योग” । उस समय कंप्यूटर की जानकारी रखने वालों की देश तथा विदेश में मांग बढ़ने लगी क्योंकि यह ऑफिस के काम को बेहद सरल बना देता था । उस समय जब भारत में लोग कंप्यूटर में काम करने की शुरआत कर थे तब कुछ लोगों को यह अंदेशा था की भारत में इससे नौकरियां कम होने लगेंगी , लेकिन कंप्यूटर के आने से लाखों लोगों को हर साल ,भारत में ही नहीं विदेशों में भी रोजगार मिलने लगा ।
इस मांग को पूरा करने के लिए अच्छे कंप्यूटर जानकार चाहिए थे ,कंप्यूटर सीखाने वाले सरकारी संस्थान व प्राइवेट कॉलेज बेहद मर्यादित थे, तो इस वजह से देश भर में बहुत सारे कंप्यूटर सीखाने वाले प्राइवेट कंप्यूटर केंद्र खुलने लगे जिसमें कंप्यूटर के अंदर मौजूद सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर(कंप्यूटर बनाना,ठीक करना) की ट्रेनिंग मिलने लगी । भारत में हजारों की संख्या में “प्राइवेट ट्रेनर” उत्पन्न हुए जिन्होंने देशभर में कंप्यूटर केंद्र खोले। देश के कुछ बड़े कंप्यूटर इंस्टिट्यूट जैसे Aptech ,NIIT तथा इन “प्राइवेट कंप्यूटर केंद्रों ” में लाखों विद्यार्थियों ने कंप्यूटर सीखा व कौशल विकास किया। इसे सीखकर आर्ट्स ,कॉमर्स के छात्र  भी ”कंप्यूटर इंजीनियर” बनने की ट्रेनिंग देने लगे ,यह एक अनोखी बात थी,इससे यह भी साबित  होता है की अपना मनपसंद क्षेत्र मिल जाए तो उसे सीखकर उसमे महारथ हासिल करना मुश्किल नहीं है चाहे वह कोई और क्षेत्र ही क्यों ना हो । सॉफ्टवेयर एक ऐसा क्षेत्र है जिसमे बहुत तेजी से नए बदलाव आते हैं ,हर बार इसके लिए ट्रेनिंग भी उपलब्ध नहीं होती ,” ट्रेनर” इन नए बदलावों को पहले खुद समझते और बाद में विद्यार्थियों को सीखाते । “सेल्फ स्टडी (स्वयं शिक्षा)” से इन ट्रेनरों ने अपनेआप को सक्षम बनाया ,उनमे कुछ करने का जज्बा था तथा अपने मनपसंद कार्यक्षेत्र में काम करने का उत्साह भी था और इस ज़ुनून से उन्होंने चुनौतियों को खुद ही पार किया, सरकार से भी उन्हें कोई अपेक्षा नहीं थी । धन्य हैं वे माता पिता जिन्होंने अपने बच्चों को अपनी पसंद का मार्ग चुनने दिया , उनकी इस उदारवादी सोच व दूरंदेशी ने उनके संतानों को अपनी योग्यता साबित करने का पूरा मौका दिया । लाखों नवयुवक कंप्यूटर सीखकर (सॉफ्टवेयर बनाने ,कंप्यूटर बेचने/ठीक करने व ट्रेनिंग देने के क्षेत्र में उतरे ।भारत में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में शिक्षित नौजवान स्वरोजगार में जुटे थे । इन ट्रेनरों  ने भारत में आईटी ट्रेनिंग को आम लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

जिनकी पढ़ाई आधार में रह गयी

ज्ञान ही व द्वार है जिसके माध्यम से ” निर्धन तथा जरूरतमंद सशक्त व सक्षम बन सकते हैं । हर दिन कुछ समय अपनी मनपसंद किताब पढ़कर रीडिंग की आदत का निर्माण करना है। इस तरह से पढ़ना भी सेल्फ स्टडी है , अपितु  यहाँ, हम अपने मनोरंजन के लिए पढ़ रहे हैं इसमे न किसी का कहना सुनना है , न किसी से सीखना   अपने पसंदीदा किताबों से देश व दुनिया में होने वाली घटनाओं की जानकारी  सकते हैं  इस तरह फिर से ज्ञान में आकर अपना बौद्धिक स्तर बढ़ा सकते हैं व अपनी  भविष्य की योजना बना सकते हैं जो समय-समय पर ज्ञान बढ़ाने के महत्त्व को नहीं समझता और इसके लिए समय नहीं निकाल पाता , वह मात्र अपने नसीब पर रोता है। 

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