भारत में बेरोज़गारी की समस्यायह किताब लिखने के कई कारण थे मुख्यत: समाज में फैल रही असुरक्षा की भावना व सद्भावना में कमी आना | देश में बढ़ती बेरोज़गारी, लाचारी का कारण व समाधान जानना भी जरूरी था | आज़ादी के बाद देश में बढे भाईचारे तथा शांति के वातावरण में मैंने कई चरणों से गुजरकर अपनी राह पायी ,अगर आज बेरोज़गारी जैसी जटिल समस्या पर कुछ विचार रख पाया हूँ तो इसमें देश प्रेमियों का आशीर्वाद है ,थोड़ी अपनी बात करूँ तो मैंने डिप्लोमा(Mech engg ) करने के बाद कुछ शारीरिक तकलीफ की वजह से अपना व्यापार ,(कंप्यूटर शिक्षा का कार्य )” करना मंजूर किया और इस तरह लगभग १० साल इस क्षेत्र में स्वरोजगार किया ,उसके बाद १० वर्ष तक BPO में काम किया जिसमे लगभग एक लाख के करीब अमेरिकियों से संवाद करने का अवसर मिला ,मुंबई की भीड़ भरे तथा व्यस्त माहौल से निकलकर कुछ नया करने की राह में अपने पैतृक गांव देहरादून आया तो गांव में बसे लोगों की परेशानी जानने का भी मौक़ा मिला ,फिर से कोचिंग(ट्यूशन और स्पोकन इंग्लिश क्लास) खोलने से शिक्षा क्षेत्र के अनेक अनुभव मिले |
कई वर्ष, दुनिया के बेहतरीन बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करके तथा विदेशियों से बात करके पता चला ,की वे कोई अलग तरीके से काम नहीं करते बस अपनी प्राथमिकता को समझते हैं और अपने काम को ईमानदारी तथा जिम्मेदारी से करते हैं | जीवन में मेरे शौक रहे हैं किताबें पढ़ना ,संवाद करना ,खेलों में भाग लेना चूंकि यह किताब बेरोज़गारी के ऊपर है तो यह भी जान लेना चाहिए की इसके कारण भी कई हैं ,मेरी कोशिश रही है की सिर्फ कारण न बताकर ठहर जाऊं पर समाधान की ओर भी इशारा करूँ ,कोई एक लेख पढ़ने से तो पूरी जानकारी नहीं मिलेगी इसलिए अन्य लेखों से विविध समस्याओं तथा समाधान के बारे में भी पता चलेगा |
किताब लिखने में मेरी मदद , मेरे बड़े शहर(मुंबई ) में वर्षों तक रहने के अनुभव ने की | यहां व्यापार जगत ,औद्योगीकरण को नजदीक से देखने का मौक़ा मिला ,कम उम्र से ही अपना व्यापार करने के वजह से अनेक तजुर्बे मिले,यह सब किताब लिखने में काम आया ,मेरे परिवार की तीन पीढ़ी सेना में रही है ,अपनी सेना के पराक्रम तथा परिवार के सदस्यों की शौर्य गाथा तथा शहादतों ने मुझे इस काम को पूरा करने में शक्ति प्रदान की , इस किताब के लेखों के द्वारा समाज में फैले कुछ विसंगतियों पर प्रकाश डालने का काम भी मैंने किया है तथा इतिहास के गलतियों से सबक लेने की बात कही है | पिछले ४० सालों से अंग्रेज़ी,हिंदी अखबार ,मैगज़ीन व किताबें पढ़ने और टीवी के कार्यक्रम देखने की वजह से देश के प्रगति पथ पर अग्रसर होने की दास्ताँ को समझने का अवसर मुझे मिला ,तो इसका विश्लेषण भी करना जरूरी था ,इस किताब से किसी जाति ,धर्म ,समुदाय को किसी तरह से ठेस पहुँचाने का मेरा विचार नहीं है परन्तु कुछ गंभीर प्रश्नों पर विचार करने की अभिलाषा और भाषा व स्वरोज़गार में मार्गदर्शन देना ,इसे लिखने का मकसद है | स्वयं शिक्षा की तरफ ध्यान आकर्षित करना भी मेरा मकसद है ,जो आज समय की मांग है | गूगल,यूट्यूब ,अखबारों व विभिन्न किताबों से यह अब बिल्कुल संभव है | यह बात ग्रामीण व वंचित विद्यार्थियों के लिए विशेष लाभकारी है और वे कई विषय घर बैठे सीख सकतें हैं | मुझे भी इन लेखों को लिखने तथा सत्यापन करने में यहाँ से काफी मदद मिली |आशा करता हूँ लिखे गए प्रत्येक लेख से आपको कुछ न कुछ नवीन जानकारी मिलेगी |
नोट: अपने शिक्षक होने के कार्यकाल में मैंने अनेक विद्यार्थियों को अंग्रेजी के पहाड़ से जूझते हुए देखा ,अंग्रेज़ी में पढाई करना हर एक के लिए आसान नहीं है, बहुत मार्गदर्शन की जरूरत पड़ती है ,हिंदी में पढ़ना आसान है और आज हिंदी में भी ज्ञान हासिल करने के लिए भरपूर सामग्री व बेह्तरीन क़िताबें हैं , परन्तु इस ओर लोगों का ध्यान ही नहीं जा रहा है, जीवन में हर व्यक्ति इंजीनियर ,डॉक्टर तो नहीं बन सकता, एक निश्चित समय तक अनेक लोग जीवन में स्थायित्व नहीं पाते ,ज्ञान अर्जन करते रहने से वे बेहतर व्यक्ति बन सकते हैं , यह तो तय है | स्वावलम्बी बनने के लिए आत्मविश्वास भी जगना जरूरी है ,विविध किताबें पढ़ने की आदत व तजुर्बे हासिल करना आत्मविश्वास जगाने में मदद करता है | हम अक्सर देखते हैं की किसी की अंग्रेजी अच्छी है तो हिंदी कमजोर है या इतिहास व संस्कृति की जानकारी नहीं है , बिना किसी दबाव के किताबें पढ़ना यह एक ऐसा स्वस्थ्य मनोरंजन है, जिससे ज्ञान भी मिलता है और भाषा की ताकत भी मजबूत होती है , पर मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में इस के लिए कम ही जगह दिखती है | विद्यार्थी पाठ्यक्रम की पढाई तक ही पुस्तकें पढ़तें हैं, पाठ्यक्रम के अलावा दूसरी किताबें पढ़ना वे जानते ही नहीं हैं, इस तरह अपनी संस्कृति ,इतिहास व जमीन से जुडी कई बातों को जानने से वंचित रह जाते हैं ,भारत में काम मिलना है तो यह भी आवश्यक है की अपनी धरोहर को समझें |
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