बच्चों का पढाई में मन जैसे पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती है, वैसे ही इंसान भी सिर्फ चेहरे, आकार, रंगरूप से ही नहीं, अपितु स्वभाव तथा विचारों से भी भिन्न होता हैं | इसी तरह जीवन में कुछ विद्यार्थी जल्दी परिपक्व हो जाते हैं, तो कुछ देर से | कोई विद्यार्थी जल्दी सीखता हैं ,तो कोई समय लेकर | हर विद्यार्थी को विकास के लिए पर्याप्त समय देना, यह सबकी जवाबदारी बनती है| यह भी देखना है, कि नन्हें पौधे (हमारे बच्चे) ज्ञान की वर्षा से , वक्त से पहले ही दब न जाये, या उचित मार्गदर्शन के मिलने से पहले ही मुरझा न जाये फिर तो सब कुछ किया गया व्यर्थ है|
आज के समय में बच्चे/ विद्यार्थी को कम अंक / फेल हो जाने पर उलाहना मिलती है, परन्तु पाठ्यक्रम को उनके लिए आसान बनाना और उनकी समझ अनुसार सीखाने का प्रयत्न कम ही होता है| स्कूलों में बच्चों के ज्ञान के आंकलन के लिए सवाल, जवाब(परीक्षा व्यवस्था ) यह मुख्य तरीका है| परन्तु बार- बार होने वाली परीक्षा, कुछ विद्यार्थीयो को पाठ समझने के बदले उसे रटने पर मजबूर कर देती है, नतीजा वे उसे परीक्षा के वक्त भूल जाते हैं| विद्यार्थी इस तरह आगे तो बढ़ते है, पर ऐसा ज्ञान पाकर जीवन में आत्मविश्वास ही नहीं जगता | दूसरी बड़ी बात है की कई विषयों को ठीक से न समझ पाने से, उन विषयों के प्रति जिज्ञासा ख़त्म हो जाती है | हमारे पाठ्यक्रम में विद्यार्थीयो में वैज्ञानिक सोच बनाने के लिए अनेक प्रावधान किये गए है, पर इस तरह पढ़ने से बच्चे आगे चलकर कुछ नया प्रयोग करना, इस बारे में सोच ही नहीं पाते |कई बच्चे अपनी समझ अनुसार तथा अनुभव से पाठ सीखने में सहूलियत महसूस करते हैं पर ऐसी व्यवस्था कुछ ही स्कूलों में है | साल दर साल विद्यार्थी जो सीखते हैं, उसका प्रयोग ही नहीं कर पाते, आगे चलकर शिक्षा के प्रति ऊब जाते हैं|अपनी मर्जी से किताबें पढ़ना वे जानते ही नहीं है |परीक्षा के लिए तैयारी करने के चक्कर में , किताबों से सीखने का आनंद ही नहीं ले पाते है |
बच्चा अगर पढाई में पिछड़ रहा है तो ?
बच्चें अगर पढाई में पिछड़ रहे है तो कुछ सवालों क़े उत्तर माँ-बाप को ढूंढ़ना आवश्यक है।
क्या बच्चे की भाषा की नींव मजबूत है ?
(अंग्रेजी पढ़ने/ समझने) में परेशानी/मुश्किलात तो नहीं आती है ।
क्या पाठ्यक्रम की उपयोगिता को समझाने का कार्य हुआ है ? क्या विद्यार्थी को पाठ्यक्रम सीखने की जरूरत के बारे में पता है और सीखने से क्या लाभ होगा यह जानकारी है ?
क्या बच्चा स्कूली व्यवस्था से तालमेल बैठा पा रहा है ?बार बार परीक्षा देने से उसके सीखने में बाधा तो नहीं आती
क्या हम बच्चों क़े पाठ्यक्रम को आसान बनाने तथा रुचिपूर्ण बनाने क़े मार्ग पर ध्यान दे रहे हैं?
क्या बच्चा पाठ्यक्रम क़े अलावा दूसरी किताबें पढता है ?
क्या परीक्षा में ख़राब प्रदर्शन क़े बाद मात्र उसे उलाहना ही मिलती है, या मार्गदर्शन की भी व्यवस्था होती है ?
क्या बच्चे को शारीरिक विकास व स्फूर्ति क़े लिए खेलकूद का पर्याप्त समय मिलता है ?
क्या अत्यधिक पढाई व परीक्षाओं , प्रतियोगिताओं से उसके कोमल मन पर आघात तो नहीं हो रहा है ?
कुछ बातें ध्यान रखने लायक
पाठ को समझने के लिए भाषा ज्ञान होना अति आवश्यक है | यह तो पहली जरुरत है | किताबें पढ़ने से यह मजबूत बनती है, और उनमें रूचि भी जगती है | अगर भाषा की नींव मजबूत हो, तो जीवन भर लाभ मिलता हैं, तो इसके लिए पर्याप्त समय देना व प्रयास करना श्रेयस्कर है | कभी कभी स्कूल, कॉलेज की दी गयी किताब से पाठ्यक्रम समझना मुश्किल लगता है, उस वक्त विविध किताबों से ज्ञान लेकर, पाठ समझने में आसानी हो सकती है | भाषा ,विज्ञान, इतिहास व सामान्य ज्ञान की मजबूत नींव रखने के लिए इन्हे कहानियों द्वारा या आसान चित्र किताबों से भी सीखा जा सकता है |भाषा सीखते हुए लिखना ,पढ़ना ,बोलना व विविध किताबें पढ़ने की आदत सभी महत्वपूर्ण हैं ,पर इसमें महारत हासिल करने के लिए चरणों में काम करना पडेगा, यह कोई सौ मीटर की दौड़ नहीं हैं अपितु एक यात्रा है जल्दबाजी करने से न यात्रा का आनंद आएगा न इसे पूरा करने पर सम्पूर्ण लाभ मिलेगा |
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